चित्त प्रवाह!?

पतञ्जलि ने चित्त वृत्तियों की बात की है!

उसे महावीर जैन ने लेश्या कहा है।
हमारे सूक्ष्म जगत में अंहकार, चित्त, मन आदि शामिल है।
हमारी नजर में चेतना रूपी हनुमान त्रिगुणी चेतन दशा को पार कर हर वक्त आत्मामुखी रहते हैं। 

जहाँ स्थाईत्व है, शान्ति है।

जैसे कि किसी चक्रवात के चारो ओर और उसके बाहर प्रभावित क्षेत्र में अशान्ति, गतिशीलता, लहरें, स्पंदन, कम्पन आदि होता है लेकिन उसका केंद्र बिल्कुल शांत, स्थाई।जैसे कि एक पहिया गतिशील होता है लेकिन उसकी धुरी स्थायी।

सच्चिदानंद रूपी सागर पर लहरें ही लहरें होती हैं।जिनके प्रभाव में हमारा सूक्ष्म शरीर हर वक्त रहता है।जो हमारे भौतिक शरीर व जगत के प्रभाव में रहता है। 

हमारी आत्मा या कारण शरीर या जगत शांत होता है, सच्चिदानंद होता है। जो यदि सागर कहा जाए तो उस पर लहरें उठती रहती हैं।जिन्हें महावीर जैन ने लेश्या कहा है। पतञ्जलि ने चित्त की वृत्तियां।यह छह होती हैं।तीन अधर्म लेश्याएँ  व तीन धर्म लेश्याएँ।

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6 Comments

बहुत ही बेहतरीन लेख

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Gunjan Kamal

18-Feb-2023 11:15 PM

बहुत खूब

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Zakirhusain Abbas Chougule

18-Feb-2023 10:20 PM

Nice

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